"वो न समझी"' Jitendra Rai वह चिड़िया थी। उड़ती थी खुली वादियों में। मैं नींद में उनींदा। वह चहचहाई तो नींद से जागा, अपना भाग्य तलाशा। मुस्कुराने लगा। जीने की राह मिल गई थी। मैंने भी चहचहाने की कोशिश की तो उसकी चहचहाहट बन्द हो गई। उसे दुख था। यूँ ही चहचहाती थी, उसके अंदर मरती जिंदगी को देख लिया था मैंने। नहीं समझा पाया उसे कि साथ चलेंगे तो दुख साझा होगा। वो न समझी। उड़ गई फिर खुली वादियों में चहचहाते हुए, आँसू सिर्फ मैं ही देख पाया। @ Short stories by Jitendra Rai. Short story, Hindi laghu katha, लघु कथाएं। लघु कथा, जितेंद्र राय की लघु कथाएं, उत्तराखंड साहित्य, गढ़वाल, गढ़वाली लेखक,पहाड़ी।