"तु चलदी रै"
Jitendra Rai
उलझी गे जिंदगी
ककड़ी का
लगुला जन,
पर तु फूल अपड़ी
मुखड़ि पर ही आण दे।
घूमि गे जिंदगी
भागीरथी सी
यूँ आंख्युं क्वी दोष नी
तु पाणी गोमुख
थैं ही बुगाण दे।
भरपाई नि ह्वे सकदी
जु खुयालि तिल
पर उठण त पोड़लो ही
हिमालय सी हिम्मत
अफ फर बि आण दे।
सवाल पुछद नियति
हर मोड़ पर जिंदगी का
तिल जाण कने च?
बस तू चलदी रै
किस्मत थैं अपड़ी छवीं
अफ्फी पुराण दे।
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जीतेन्द्र राय काव्य। आधुनिक गढ़वाली कवितायेँ। गढ़वाली कवितायेँ। गढ़वाली गीत।। पहाड़ी काव्य। कुमाउँनी कवितायेँ। Poetry by Jitendra Rai.. modern Garhwali poems...pahadi kavitayen...kumauni kavitayen...pahadi geet ..kavitayen pahad ki.
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जीतेन्द्र राय काव्य। आधुनिक गढ़वाली कवितायेँ। गढ़वाली कवितायेँ। गढ़वाली गीत।। पहाड़ी काव्य। कुमाउँनी कवितायेँ। Poetry by Jitendra Rai.. modern Garhwali poems...pahadi kavitayen...kumauni kavitayen...pahadi geet ..kavitayen pahad ki.
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