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"पाड़ा की चेली"
तेरो भाग म
दिनभरो कु काम
कस काटली जिंदगी।
दूर नौला
पार वन
घास पानी
म रौलि जिंदगी।
कस व्योहार
कर्ला लोग
तू पैली
इज बाज्यू की प्यारी
अब ब्वारी ह्वेग।
पर तू
चेली छै
उच्चा पाडूं की
मैं के पता
तू अच्छू काटली
अपड़ी जिंदगी।
कला कर छै
अफ़सोस
पाड़ म ब्या हैगो
100 साल
होली
तेरी जिंदगी।





........
जीतेन्द्र राय काव्य। आधुनिक गढ़वाली कवितायेँ। गढ़वाली कवितायेँ। गढ़वाली गीत।। पहाड़ी काव्य। कुमाउँनी कवितायेँ। Poetry by Jitendra Rai.. modern Garhwali poems...pahadi kavitayen...kumauni kavitayen...pahadi geet ..kavitayen pahad ki.

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