"सच्चू की दीवाली" (2) Jitendra Rai
सच्चू को मिठाई की दुकान में काम करते छः माह हो गये हैं। घर से फोन आया तो उसे पता चला कि इस बार दीवाली में उसके चाचा के बेटे का भैला है। जैसा कि गढ़वाल में परम्परा है कि दीवाली में सबसे बड़े बेटे का एक बार पंचायत में भैला दिया जाता है, जिसमें एक बकरा या अपनी सामर्थ्यनुसार रूपये दिये जाते हैं। पूरा परिवार फूले नहीं समा रहा था। चाची का भी फोन आया कि हमारा सबसे बड़ा बेटा तो तू है। तू नहीं आयेगा तो हमारी खुशी अधूरी रह जायेंगी। सच्चू ने भुली विमुली के लिये दो सूट, मां के लिये दो साड़ियां व पिताजी के लिये एक पैंट कमीज खरीदीं। चाचा के बेटे पदम, जिसे वह पद्दू कहकर पुकारता था, के लिये खिलौने लिये। दीवाली व दिल्ली। दुकानों पर ग्राहकों का तांता। क्षण भर की भी फुर्सत नहीं। मालिक से छुट्टी की बात कैसे करे ? दीवाली से दो दिन पहले हिम्मत जुटाकर उसने छुटटी की बात कह ही दी। मालिक का पारा चढ़ गया। ऐसे समय पर ही तुम्हे छुटटी चाहिये होती है, साल भर में कमाई का यही तो समय होता है। सच्चू का दिल बैठ गया। रात ग्यारह बजे जब फुर्सत मिली तो फोन पर मां को सारी बात बताई। मां बोली भैले तो होते रहेंगे बेटा, नौकरी मत छोडना। घर का तो तुझे पता ही है पिताजी दिहाडी मजदूरी से कितना करेंगे। विमुली भी जवान होने लगी है, कल उसकी भी तो शादी करनी है।
अगली सुबह सच्चू छः बजे उठा और नहा धोकर जल्दी ही दुकान पर पहुॅच गया। मालिक बहुत खुश हुआ। रात दस बजे जब दुकान बन्द करने का समय आया तो मालिक ने उसे एक किलो बर्फी व दो सौ रूपये दिये। वह अपने कमरे में आया और भूखा ही सो गया।
@Short stories by Jitendra Rai
Uttarakhand literature, Laghu katha, Garhwali sahity, pahadi sahity, लघु कथाएं, जीत, कहानियां, उत्तराखंडी साहित्य।
सच्चू को मिठाई की दुकान में काम करते छः माह हो गये हैं। घर से फोन आया तो उसे पता चला कि इस बार दीवाली में उसके चाचा के बेटे का भैला है। जैसा कि गढ़वाल में परम्परा है कि दीवाली में सबसे बड़े बेटे का एक बार पंचायत में भैला दिया जाता है, जिसमें एक बकरा या अपनी सामर्थ्यनुसार रूपये दिये जाते हैं। पूरा परिवार फूले नहीं समा रहा था। चाची का भी फोन आया कि हमारा सबसे बड़ा बेटा तो तू है। तू नहीं आयेगा तो हमारी खुशी अधूरी रह जायेंगी। सच्चू ने भुली विमुली के लिये दो सूट, मां के लिये दो साड़ियां व पिताजी के लिये एक पैंट कमीज खरीदीं। चाचा के बेटे पदम, जिसे वह पद्दू कहकर पुकारता था, के लिये खिलौने लिये। दीवाली व दिल्ली। दुकानों पर ग्राहकों का तांता। क्षण भर की भी फुर्सत नहीं। मालिक से छुट्टी की बात कैसे करे ? दीवाली से दो दिन पहले हिम्मत जुटाकर उसने छुटटी की बात कह ही दी। मालिक का पारा चढ़ गया। ऐसे समय पर ही तुम्हे छुटटी चाहिये होती है, साल भर में कमाई का यही तो समय होता है। सच्चू का दिल बैठ गया। रात ग्यारह बजे जब फुर्सत मिली तो फोन पर मां को सारी बात बताई। मां बोली भैले तो होते रहेंगे बेटा, नौकरी मत छोडना। घर का तो तुझे पता ही है पिताजी दिहाडी मजदूरी से कितना करेंगे। विमुली भी जवान होने लगी है, कल उसकी भी तो शादी करनी है।
अगली सुबह सच्चू छः बजे उठा और नहा धोकर जल्दी ही दुकान पर पहुॅच गया। मालिक बहुत खुश हुआ। रात दस बजे जब दुकान बन्द करने का समय आया तो मालिक ने उसे एक किलो बर्फी व दो सौ रूपये दिये। वह अपने कमरे में आया और भूखा ही सो गया।
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