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Showing posts from August, 2019

रानू मण्डल की कहानी जितेंद्र राय की जुबानी।

"एक बिस्कुट, एक रोटी के लिए यह मधुरिमा" Jitendra Rai अद्भुत!अविश्वसनीय!!अकल्पनीय!!! "तेरी मेरी तेरी मेरी...." आवाज कानों में पड़ते ही आंखें बंद होने लगतीं हैं और कानों में शहद सा घुलने लगता है। मुख से वाह, बेमिशाल स्वतः प्रस्फुटित होने लगता है। यह कहानी है रानू मण्डल की, जो वर्षों खुद से अनभिज्ञ थीं। उनके सुरमई कंठ की क्या पराकाष्ठा हो सकती है, इस बात से  बिल्कुल बेख़बर। पश्चिम बंगाल के राणाघाट रेलवे स्टेशन पर बैठकर वह गातीं थीं, सिर्फ एक बिस्कुट, रोटी और चंद सिक्कों के लिये। सुनकर ही आंखें भर आतीं हैं। एक वीडियो के वायरल हो जाने से दुनिया की निगाहों में आईं और करोड़ों हृदयों में उतर गईं। अब वह एक सेलिब्रिटी बन गईं हैं, कई टी वी शोज में उन्हें आमंत्रित किया जा रहा है। हिमेश रेशमिया ने इंस्टाग्राम पर एक वीडियो पोस्ट किया है उनका जिसमें वह तेरी मेरी तेरी मेरी, तेरी मेरी कहानी.... गाना रिकॉर्ड करते हुए दिखाई दे रहीं हैं।। नमन आपको। "जीत" की शुभकामनाएं। @ Jitendra Rai " Jeet"

तुमथें सूगर नीच त इथगा मिट्ठू कनख्वे बोल्द्यां फिर।

"तुमथें सूगर नीच त इथगा मिट्ठू कनख्वे बोल्द्यां फिर।" Jitendra Rai लाला जी दुकान म सुबेर भटी बैठ्यां छा, पर एक बि ग्राहक नि ऐ। 9 बजी अचानक लाला जी कु बी पी बढ़ी गे अर बेहोश ह्वे गीं। लाली चाय दीणु कु ऐ त हाय तौबा मची गे " हे सौणी का बाबा। हे क्य ह्वै तुमथें? कन बिजोक ह्वे। सर्यो बजार खुल्ला च अर कैल युंथे नि देखी। क्वी त आवा"    हल्ला सूणि के भीड़ जमा ह्वे ग्याई। तत्काल 108 बुलये गे। वजन ज्यादा छौ लाला जी कु त कई लोग लगीं तब जैकी लाला जी गाड़ी म बिठये जै सकीं।    अस्पताल म बनि बनि क मरीज। डॉक्टर साबन इंजेक्शन दे त होश आई लाला जी थैं। इने उने देखी त लगी कि सर्री दुनिया बीमार च। लोग भैर कम भितर अस्पताल म जादा छिन। चेक अप का बाद रिपोर्ट आई। बी पी टेंशन की वजह से बढ़ी गे छौ। सूगर नॉर्मल छाई। कुछ दवे अर कुछ हिदायत दीं डॉक्टर साबन, अर लाला जी घौर पौंची गीं।  अगला दिन दुकनि म भीड़ लाला जी कि। बनि बनि की बत्था। "भरपूर छा पैसा पाई जमीन जैदाद से। तुमथें क्यांकि ह्वाई टेंशन?"  "सूगर नीच त इथगा मिट्ठू कनख्वे बोल्द्यां लालाजी?" "हाँ भै अमीर आदिम छिन,...

बेसिर पैर

"बेसिर, पैर "  Another absurd उसका नाम रुलदू है, उसे रोते नहीं देखा मैंने कभी। तुम तो हंसमुख हो न, कभी हँस भी लिया करो। कल भीमू मिला था मुझे, शिकार खा रहा था । हड्डियाँ एक तरफ रख रहा था और अपनी हड्डियों में शिकार चढ़ जाने की कामना कर रहा था। सरला ने तो गली में गालियों की बौछार कर रखी है और सरल गणित के कठिन सवालों में उलझा है।राजकुमार की कटोरी में 10 रुपये डाले मैंने तो राजा को भी बुला लाया, मजबूरन उसे भी देने पड़े। रानी बेचारी दूर से देख रही थी। सुना है भोलू चालू हो गया है, भालुओं की खाल का तस्कर है कह रहा था कोई। यह किसी और ने नहीं बल्कि सुरीली ने अपनी कर्कश आवाज में बताया मुझे। सुनो , बहुत बोलते हो, तुम तो जीत हो न। हार क्यों जाते हो फिर। "तुम्हारी हार की मांग सुनकर" Absurd by Jitendra Rai "Jeet" Uttarakhand literature, Laghu katha, Garhwali sahity, pahadi sahity, लघु कथाएं, जीत, कहानियां, उत्तराखंडी साहित्य।

सच्चू की दीवाली

"सच्चू की दीवाली"     (2)   Jitendra Rai सच्चू को मिठाई की दुकान में काम करते छः माह हो गये हैं। घर से फोन आया तो उसे पता चला कि इस बार दीवाली में उसके चाचा के बेटे का भैला है। जैसा कि गढ़वाल में परम्परा है कि दीवाली में सबसे बड़े बेटे का एक बार पंचायत में भैला दिया जाता है, जिसमें एक बकरा या अपनी सामर्थ्यनुसार रूपये दिये जाते हैं। पूरा परिवार फूले नहीं समा रहा था। चाची का भी फोन आया कि हमारा सबसे बड़ा बेटा तो तू है। तू नहीं आयेगा तो हमारी खुशी अधूरी रह जायेंगी। सच्चू ने भुली विमुली के लिये दो सूट, मां के लिये दो साड़ियां व पिताजी के लिये एक पैंट कमीज खरीदीं। चाचा के बेटे पदम, जिसे वह पद्दू कहकर पुकारता था, के लिये खिलौने लिये।  दीवाली व दिल्ली। दुकानों पर ग्राहकों का तांता। क्षण भर की भी फुर्सत नहीं। मालिक से  छुट्टी की बात कैसे करे ? दीवाली से दो दिन पहले हिम्मत जुटाकर उसने छुटटी की बात कह ही दी। मालिक का पारा चढ़ गया। ऐसे समय पर ही तुम्हे छुटटी चाहिये होती है, साल भर में कमाई का यही तो समय होता है। सच्चू का दिल बैठ गया। रात ग्यारह बजे जब फुर्सत मिली तो...

आड़ू

"आड़ू"  An absurd "भूख लगी है न?" "हाँ।बहुत ज्यादा।" "तो आड़ू खा लो। अभी काम कर रही हूँ।" "तुम भी भूखी हो सुबह से क्या?" "नहीं मैंने भी आड़ू ही खाये।" "और बच्चों ने?" "उन्होंने भी।" "क्यों?" "क्योंकि बहुत दिन से शांति है इस घर में।" "लेकिन वह तो मेरी बहन है।" "मेरी नहीं।" Absurd by Jitendra Rai Short story, Hindi laghu katha, लघु कथाएं। लघु कथा, जितेंद्र राय की लघु कथाएं, उत्तराखंड साहित्य, गढ़वाल, गढ़वाली लेखक,पहाड़ी।

परजीवी

"परजीवी" सभी ने उसके लिए सर्वस्व न्योछावर कर दिया,अपना सुख चैन, कमाई धमाई। वह था भी मेधावी। अपना मुकाम हासिल कर गया। पूरा परिवार दादा दादी, माँ पापा, चाचा चाची, भाई बहन देवपूजन करने लगे, उनका सत सत नमन करने लगे। जल्द ही बहू घर आ गई। वह संस्कारों की प्रतिमूर्ति। वह सर्वस्व पर हक जमाने वाली। डर डर कर बात करते हैं आजकल जिन्होंने उसे इस मुकाम तक पहुंचाया। परजीवी बनकर रह गए हैं। @ Short stories by Jitendra Rai. Short story, Hindi laghu katha, लघु कथाएं। लघु कथा, जितेंद्र राय की लघु कथाएं, उत्तराखंड साहित्य, गढ़वाल, गढ़वाली लेखक,पहाड़ी।

मुस्कुराहटें

"मुस्कुराहटें"  Jitendra Rai      अपनी कार को सड़क पर दौड़ाये जा रहा था वह। बहुत गमगीन था। अभी अभी मित्र को शादी की सालगिरह की शुभकामना भेजी थी उसने। उसी क्षण उसे याद आया कि आज तो उसकी भी सालगिरह है, और याद हो आये उसे बर्बादी के 10 साल। पल पल की मौत। सब कुछ होते हुये आज कुछ नहीं था उसके पास। गर्मी बहुत थी तो एक पेड़ के नीचे एक ठेली के पास कार पार्क की उसने। जलजीरे का ठेला था। "एक गिलास बर्फ डालकर देना भाई" वह बोला। "जी साब, अभी लीजिये।" वह पास ही रखी बेंच पर बैठ गया और फिर उन्हीं सोचों में डूब  गया।        ||||Short stories by Jitendra Rai||| "आज गर्मी है, तुम ठाड़े ठाड़े थक गए हो, बैठ जाबो हियां। लाबो मैं बना देऊं।" महिला के शब्दों में गजब का स्नेह था। उसने सर उठाकर देखा। सामान्य सा चेहरा, पुराने कपड़ों में थी वह। चेहरे पर मुस्कुराहट। "अरे नाहीं हम कर लेब" " कैसी बात करत हो मुनिया के बापू। हम हैं न। हम पत्नी हैं तोहरी, सब जानत हैं तुहार। कब थके हो, कब भूख लागै है, कब नींद और कब प्यार आवे है" बोलते ही खिलखिलाकर हँस पड़ी वह। ...